Friday

इंतज़ार.....

टूटी दीवार के आसपास
फुदकती नन्ही गौरैया की चहचहाहट,
फूंकती है प्राण, सुबह की मृत देह में।

और खंडहर में बसी दो बूढी आँखें,
जाग उठती हैं, मीलों दूर बसे,
बेटे को देखने की लालसा लिए।

गौरैया जानती है उड़ना सीखने पर,
परिंदे नहीं लौटा करते घोंसलों की ओर
पर बूढी आँखें समझते हुए भी
नहीं छोड़ती हरकारे का इंतज़ार।

और धीरे धीरे मरता दिन
रात का कफ़न ओढ़ सो जाता है,
खंडहर की एक ईंट और गिर जाती है।

Sunday

तारे ....

बच्चे अब नहीं बनाया करते
गीली रेत के घरोंदे,

दीवारों पर अब नजर नहीं आती
अनगढ़ हाथों की चित्रकारी,

वृद्धाश्रम में बैठी बूढी नानी
अकेले दोहराती परियों की कहानी,

कंप्यूटर से चिपकी नन्ही आंखों को
बचाया जाता है संवेदनाओं के संक्रमण से,

क्योंकि बनाना है
उन्हें मशीनों की तरह,
और मशीनें कभी हंसा या रोया नहीं करती हैं।

विश्वास

माना बहुत बड़ा है
दर्द जो आंखों से
बहकर सारे वजूद को
डुबो देता है,
पर दर्द से भी बड़ा है -

विश्वास,
जो पक्षी के पंखों में पल
आकाश हो जाता है,
जो सीप की पलकों में
सिमट मोती हो जाता है,

विश्वास ,
जो लहरों के दिल में
मचल समंदर हो जाता है,
जो प्रेम का पिता बनकर
मसीहा हो जाता है ।